22 अप्रैल, 2009

बाईस वर्षो से रेलवे की जमीन पर सिर छिपाने को विवश हैं लोग

गंगा के भीषण कटाव से 1977 में बेघर हुए करीब पांच हजार की आबादी आज भी रेलवे की जमीन पर स्टेशन के आस पास खानाबदोशी जिंदगी बिताने को विवश हैं। उन्हें यह भय सता रहा है कि रेल विभाग उन लोगों को कभी भी हटा देगा तो वे कहां रहेंगे। इनलोगों को अपनी जमीन नहीं है और न ही सरकार ने अबतक उनके पुनर्वास की व्यवस्था की है। वर्ष 1977 में आयी भीषण बाढ़ से पूरा नारायणपुर प्रखंड तबाह हो गया था। उसके कटाव से कई गांवों के लोग बेघर हो गए थे जो आज तक स्थानीय रेलवे की परती जमीन पर बसे हुए हैं। डा. सुभाष कुमार विद्यार्थी, मो. अहमद अली, मो. सत्तार , मो. अमजद वसीम, मो. नौशाद, मो. अजहर आदि कटाव पीड़ितों ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व बिहार सरकार के कृषि मंत्री भी यहां आये थे तब बड़ी उम्मीद के साथ उन लोगों ने उनसे पुनर्वास की मांग की थी। उस समय उन्होंने उनके पुनर्वास का आश्वासन तो दिया लेकिन उसपर अबतक अमल नहीं हो पाया है। समस्याओं से त्रस्त इन बेघर परिवारवालों ने तय किया है कि यदि उनके पुनर्वास की ठोस व्यवस्था नहीं किया जाएगा तो वे मतदान नहीं करेंगे।

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