11 अप्रैल, 2013

बिहार में हैं देश के सबसे ज़्यादा 'वीआईपी'

जान-माल पर ख़तरे की आशंका के मद्देनज़र सरकारी अंगरक्षक पाने वाले 'वीआईपी' श्रेणी के लोग सबसे ज़्यादा  बिहार में हैं. इनकी संख्या 3,591 है. 'बॉडी गार्ड्स' मुहैया करवाने की मद में सबसे अधिक ख़र्च करने वाला राज्य भी बिहार ही है. यहाँ इस मद में सालाना ख़र्च की रक़म 141.95 करोड़ रुपये है.

बिहार सरकार की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में पेश एक हलफ़नामे के बाद ये तथ्य सामने आए हैं. ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा जुटाए आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं.
देश भर में 14,842 'अति महत्वपूर्ण' व्यक्तियों की सुरक्षा में 47,557 पुलिसकर्मी लगे हुए हैं. इनमें 'अति महत्वपूर्ण' लोगों में बिहार के 3591 शामिल हैं. यानी इसमें क़रीब 20 फ़ीसदी योगदान अकेले बिहार का है.

20% वीआईपी के लिए

ज़ाहिर है कि राज्य में लगभग 55 हज़ार पुलिसकर्मियों की संख्या वाले पुलिस बल में से 20 प्रतिशत यानी 10 हज़ार से अधिक पुलिसकर्मियों को ' वीआइपी सिक्यूरिटी' में लगा दिया गया है.
ग़ौर करने वाली बात यह है कि जिस राज्य में ग़रीबों की तादाद बहुत ज़्यादा और प्रति व्यक्ति आमदनी बहुत कम है, वहां 'वीआइपी' सुरक्षा के लिए सरकारी ख़ज़ाना खुला हुआ है.
"ये स्टेट की तरफ से जो सिक्योरिटी का तामझाम या बंदोबस्त दिखता है, वह सच पूछिए तो डेमोक्रेसी के बिलकुल ख़िलाफ़ है. बन्दूक वालों को साथ लेकर चलने से जो बड़े नेता या सरकारी बाबू वाला रुतबा ये लोग दिखाना चाहते हैं, उनको इस बात की चिंता नहीं है कि बिहार के पुलिस-थाने में सिपाहियों की कैसी क़िल्लत है."
रज़ी अहमद, गांधीवादी विचारक
ऐसे 70 लोगों को सरकारी अंगरक्षक मिले हुए हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. यही आंकड़ा राज्य पुलिस-प्रशासन पर सबसे तीखा सवाल उठा रहा है.
साथ ही 382 निजी व्यक्तियों को सरकारी खर्च पर अंगरक्षकों की सुविधा प्राप्त है. इनमें ज़्यादातर व्यवसायी, ठेकेदार और दबंग बाहुबली शामिल हैं.
राज्य के पुलिस प्रवक्ता और अपर पुलिस महानिदेशक रविन्द्र कुमार ने बीबीसी से कहा, ''ये कौन लोग हैं, मैं नहीं बता पाऊंगा. लेकिन अगर किसी पर मुक़दमा चल रहा है और दोष साबित नहीं हुआ है तो उनके लिए खतरे के मद्देनज़र, सुरक्षा व्यवस्था करना सरकार का दायित्व हो जाता है.''
बिहार में 1,456 लोगों पर एक पुलिसकर्मी का अनुपात बैठता है, जबकि राष्ट्रीय अनुपात 761 पर एक का है. ऐसे में आम लोगों की सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था के लिए पुलिस-फ़ोर्स की कमी समझ आती है.
अपर पुलिस महानिदेशक ने पुलिस बल की कमी के बारे में बताया, ''पुलिसकर्मियों के 47 हज़ार 761 पद हाल ही में सृजित किए गए हैं और उम्मीद है कि इससे पुलिस बल की कमी का मौजूदा संकट काफी हद तक दूर हो सकेगा.''

आम आदमी में गुस्सा

इस मामले पर आम लोगों का रोष बिलकुल साफ़ दिखता है.
लोग कहते हैं, ''पब्लिक के लिए सुरक्षा तो आजकल है ही नहीं. जो मंत्री-संतरी हैं, उनकी हिफाजत के लिए तरह-तरह के अंगरक्षक, कमांडो तैनात होते हैं. जान-माल की रक्षा तो बस हमारे नेता की होनी चाहिए. हमलोग तो उनकी नज़र में फालतू-बेकार आदमी हैं. अभी हमने देखा कि मंत्री जी के आगे-पीछे पुलिस वाहनों का जो काफिला गुज़रा, उस कारण देर तक रोड जाम रहा.''
यहाँ के वरिष्ठ नागरिक और जाने-माने गांधीवादी विचारक रज़ी अहमद को यह वीआइपी सुरक्षा व्यवस्था ही लोकतंत्र विरोधी लगती है.
उन्होंने कहा, ''ये स्टेट की तरफ से जो सिक्योरिटी का तामझाम या बंदोबस्त दिखता है, वह सच पूछिए तो डेमोक्रेसी के बिलकुल ख़िलाफ़ है. बन्दूक वालों को साथ लेकर चलने से जो बड़े नेता या सरकारी बाबू वाला रुतबा ये लोग दिखाना चाहते हैं, उनको इस बात की चिंता नहीं है कि बिहार के पुलिस-थाने में सिपाहियों की कैसी कमी है.''
सब जानते हैं कि ये जो सरकारी बॉडी गार्ड वाला 'वीआईपी तबक़ा' है, उसमें मंत्री, सांसद, विधायक या बड़े अधिकारियों के अलावा सत्ता पोषित लोगों की जमात मुख्य रूप से शामिल होती है.

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