राजेश कानोडिया/नवगछिया : कोसी पार कदवा दियारा पंचायत में लोग अपनी जिन्दगी अपने भरोसे जीते हैं। यहां सरकारी सुविधा शून्य के बराबर है। आलम है कि दियारा का दर्द सरकारी पदाधिकारी भी महसूस करना नहीं चाहते। जी हां, कहने को तो कदवा दियारा और खैरपुर कदवा में एक अस्पताल है। मगर यहां डाक्टर का काम कम्पाउन्डर संभालते हैं। दियारा के लोग उसे ही डाक्टर समझते हैं। ग्रामीणों के अनुसार अस्पताल भवन का ताला महीनों तक नहीं खुलता। वहीं दवा से लेकर अन्य कई तरह के टीकों का यहां कोई अता-पता नहीं है। सिर्फ पोलियो ड्राम के दिन स्वास्थ्य कर्मी नजर आते हैं। जबकि इस क्षेत्र में कालाजार का प्रकोप रहता है। अस्पताल में डाक्टर व नर्स का घोर अभाव है। इसके अलावा यहां से शहर जाने के लिए सड़क भी नहीं है। ऐसे में लोगों को नदी पार कर जाना पड़ता है। यानी कुल मिलाकर यहां मरीजों का इलाज भगवान भरोसे है। अस्पताल परिसर में खाली पड़ी जमीन में लगे पौधे की देखभाल करने वाले हरिनन्दन सिंह कहते हैं कि डाक्टर तो नहियै छै, नर्स आरु कम्पाउन्डर कोई कहां आवै छै, सिर्फ पोलियो दिन लोग आवै छै। अन दिना सब कुछ बंद रहे छै। शिक्षक गुरुचरण बताते हैं कि वर्ष 1976 में यहां स्वास्थ्य उपकेन्द्र की स्थापना की गई थी, जो अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ढोलबज्जा एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नवगछिया के अन्तर्गत आता है। यहां स्वास्थ्य कर्मी का मात्र दो ही पद सृजित है जिनमें एक पुरुष के पद पर 1982 से ही ओम प्रकाश पोद्दार हैं लेकिन दूसरे महिला पद पर लम्बे अर्से से महिला स्वास्थ्य कर्मी की बहाली नहीं की गई है। पिछली बार आई बाढ़ में चहारदिवारी भी क्षतिग्रस्त हो गई।
01 दिसंबर, 2009
दियारा का दर्द : अपनी जिन्दगी अपने भरोसे
राजेश कानोडिया/नवगछिया : कोसी पार कदवा दियारा पंचायत में लोग अपनी जिन्दगी अपने भरोसे जीते हैं। यहां सरकारी सुविधा शून्य के बराबर है। आलम है कि दियारा का दर्द सरकारी पदाधिकारी भी महसूस करना नहीं चाहते। जी हां, कहने को तो कदवा दियारा और खैरपुर कदवा में एक अस्पताल है। मगर यहां डाक्टर का काम कम्पाउन्डर संभालते हैं। दियारा के लोग उसे ही डाक्टर समझते हैं। ग्रामीणों के अनुसार अस्पताल भवन का ताला महीनों तक नहीं खुलता। वहीं दवा से लेकर अन्य कई तरह के टीकों का यहां कोई अता-पता नहीं है। सिर्फ पोलियो ड्राम के दिन स्वास्थ्य कर्मी नजर आते हैं। जबकि इस क्षेत्र में कालाजार का प्रकोप रहता है। अस्पताल में डाक्टर व नर्स का घोर अभाव है। इसके अलावा यहां से शहर जाने के लिए सड़क भी नहीं है। ऐसे में लोगों को नदी पार कर जाना पड़ता है। यानी कुल मिलाकर यहां मरीजों का इलाज भगवान भरोसे है। अस्पताल परिसर में खाली पड़ी जमीन में लगे पौधे की देखभाल करने वाले हरिनन्दन सिंह कहते हैं कि डाक्टर तो नहियै छै, नर्स आरु कम्पाउन्डर कोई कहां आवै छै, सिर्फ पोलियो दिन लोग आवै छै। अन दिना सब कुछ बंद रहे छै। शिक्षक गुरुचरण बताते हैं कि वर्ष 1976 में यहां स्वास्थ्य उपकेन्द्र की स्थापना की गई थी, जो अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ढोलबज्जा एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नवगछिया के अन्तर्गत आता है। यहां स्वास्थ्य कर्मी का मात्र दो ही पद सृजित है जिनमें एक पुरुष के पद पर 1982 से ही ओम प्रकाश पोद्दार हैं लेकिन दूसरे महिला पद पर लम्बे अर्से से महिला स्वास्थ्य कर्मी की बहाली नहीं की गई है। पिछली बार आई बाढ़ में चहारदिवारी भी क्षतिग्रस्त हो गई।
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