25 दिसंबर, 2009

शाही महल हत्याकांड में शामिल थे ज्ञानेंद्र

खुद को नेपाल के शाही परिवार का अंगरक्षक बताने वाले एक कैदी ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2001 में शाही महल में हुए संहार में अपदस्थ नरेश ज्ञानेंद्र और उनके पुत्र पारस संलिप्त थे।

गौरतलब है कि इस घटना में पूर्व नरेश वीरेंद्र और उनके परिवार के अधिकतर सदस्यों की मौत हो गई थी। ज्ञानेंद्र षड्यंत्र की कई कहानियों के केंद्र में रहे हैं जिनमें से एक शाही महल में हुए संहार की घटना के बारे में है।

इस संहार में उनके बड़े भाई और देश के लोकप्रिय नरेश रहे वीरेंद्र और युवराज दीपेंद्र समेत शाही परिवार के अधिकतर सदस्य मारे गए थे। युवराज दीपेंद्र ने कथित तौर पर नशे की हालत में संहार को अंजाम दिया था।

‘काठमांडू पोस्ट’ अखबार के ऑनलाइन संस्करण ‘ई-कांतिपुर’ के मुताबिक एक दंपति की हत्या के मामले में वीरगंज जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे लाल बहादुर मागर का दावा है कि वह शाही संहार का चश्मदीद है।

संवाद समिति ‘आरएसएस’ के हवाले से आई इस खबर के मुताबिक लालबहादुर का दावा है कि पूर्व नरेश के परिवार की हत्या में पूर्व युवराज पारस का हाथ था। उसका यह भी दावा है कि जब संहार हुआ, तब वह दीपेंद्र के अंगरक्षकों में से एक था।

खबर के मुताबिक जब माओवादी सांसद लीला कुमार बागा गुरुवार को जेल में लाल बहादुर से मिलने गए तो उसने आरोप लगाया कि संहार में पारस संलिप्त है। उसने यह भी आरोप लगाया कि संहार में ज्ञानेंद्र का भी हाथ है। जून 2008 में 64 वर्षीय ज्ञानेंद्र शाही महल से चले गए थे। इससे दो सप्ताह पहले 601 सदस्यीय संविधान सभा ने देश में राजशाही खत्म कर दी थी।

अप्रैल 2006 से ज्ञानेंद्र के खिलाफ शुरू हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद जब सीपीएन माओइस्ट गत वर्ष के संविधान सभा के चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी तो देश में 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म कर दिया गया।

गत वर्ष मई में पद छोड़ने को मजबूर किए गए ज्ञानेंद्र अब आम नागरिक हैं और उन्हें नेपाली कैबिनेट के मंजूर किए प्रस्तावों के तहत कर अदा करना होगा। सरकार ने घोषणा की है कि शाही संपत्ति पर कर लगाए जाएँगे।

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