बिहार के मुख्यमंत्री के मुताबिक
सूखे पर जारी केन्द्र के दिशा-निर्देश स्पष्ट नहीं हैं। सोमवार को नीतीश कुमार ने कहा कि ग्रैच्यूटस रिलीफ (जीआर) और नरेगा के लिए अतिरिक्त राशि के बारे में केन्द्र को स्पष्ट निर्णय लेना होगा। सूखे से निपटने के लिए उनकी सरकार द्वारा मांगी गई राहत राशि (23 हजार करोड़ रुपये) में इन दो मदों के लिए बड़ा हिस्सा निर्धारित है। जीआर के तहत केन्द्र की योजना नगद राशि देने की है। इस मद में बिहार को 10,800 करोड़ रुपये चाहिए। रोजगार के अतिरिक्त अवसर के सृजन के लिए 10 हजार करोड़ की दरकार अलग से है। इन मामलों में केन्द्र यथाशीघ्र निर्णय ले ले तो बेहतर होगा। जनता दरबार के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि संकट गम्भीर है। अगर हथिया नक्षत्र में बारिश नहीं होती है तो सन् 1967 के अकाल से भी बुरी स्थिति होगी। सितम्बर में अगर बारिश नहीं होगी तो रबी की फसल भी नहीं हो पाएगी। सूखे का जायजा लेने आई केन्द्रीय टीम को उन्होंने पूरी स्थिति से अवगत करा दिया है।
नियंत्रण कक्ष खुला
बिजली की उपलब्धता की स्थिति की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अतिरिक्त बिजली तो दूर बिहार के लिए तय 1500 मेगावाट का कोटा भी हमें नहीं मिल पा रहा है। कालाबाजारी को रोकने व दूसरी व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के लिए उनकी सरकार पूरा जोर लगाए हुए है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में इसके लिए एक नियंत्रण कक्ष खुला है। हम दाल का भी आयात करेंगे।
फूड सिक्यूरिटी एक्ट के सम्बन्ध में केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से हुई चर्चा के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि वह 65 लाख लोगों को गरीबी रेखा से नीचे का मानकर उनके लिए तीन रुपये प्रति किलो की दर से अनाज उपलब्ध कराये जाने की बात कह रहे हैं, जबकि हमारे यहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की वास्तविक संख्या डेढ़ करोड़ के करीब है। शेष लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा! इस पर सोचे जाने की जरूरत है।