18 अप्रैल, 2009

गायब है वोटों के सौदागर

सजायाफ्ता बाहुबलियों के चुनाव लड़ने के मंसूबों पर कोर्ट द्वारा पानी फेरने का असर गांव देहात के छोटे बाहुबलियों पर साफ दिख रहा है। एक तरह से ऐसे बाहुबलियों के चंगुल से वोटर आजाद हो गये हैं। चुनावी मंडी से वोटों के ठेकेदार भी गायब हैं। इसे आयोग की सख्ती का असर कहे या फिर बदलते समय में हो रहे चुनाव में पुलिस- प्रशासन की मुस्तैदी। गंगा पार के इलाकों में जहां कभी बाहुबलि चुनाव में दलीय प्रतिबद्धता या फिर धनबल के बूते किसी प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने का फरमान जारी करते थे। इतना ही नहीं वे अपना असर दिखाने के लिए प्रत्याशियों के साथ घूमते थे। लेकिन इस बार के चुनाव में यहां ऐसा कुछ नहीं देखने को मिल रहा है। वोटों का सौदा कर थोक भाव में वोट दिलवाने का भरोसा दिलाकर अपनी जेबें भरने वाले सौदेबाज चुनावी मंडी से अचानक गायब हो गये हैं। सुदूर देहात के मतदाता भी इस बार बेखौफ होकर अपना वोट अपनी इच्छानुसार डालने की बात कह रहे हैं। चुनाव में बाहुबलियों की दबंगता पर लगाम पिछले विधानसभा चुनाव में ही लग गया था जिस समय के जे राव ने बिहार में चुनाव की परिभाषा ही बदल दी थी। प्रत्याशियों द्वारा भी इस बार बाहुबलियों से संपर्क नहीं किया जा रहा है। कुछ एक बाहुबली से जब गंगा पार में प्रत्याशियों ने उनके पक्ष में वोट डलवाने की अपील की तो उनका जवाब सुन प्रत्याशियों के माथे पर पानी आ गया। एक बाहुबली नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अब जबकि क्राइम करने में सौ बार सोचना पड़ता है किसके लिए प्रचार करे और क्यों करे। उनका कहना था कि चुनाव में किसी राजनेता के लिए प्रचार करना या वोट डालने का फरमान जारी करने का जमाना लद गया है।

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