09 जनवरी, 2011

बिहार की निचली अदालतों में सब कुछ ठीक नहीं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की निचली अदालतों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि राज्य की कुछ अदालतों में फौजदारी मामलों की सुनवाई में 'उपेक्षापूर्ण' रवैया अपनाया जा रहा है। पटना हाईकोर्ट से इस संबंध में जरूरी कदम उठाने का निर्देश देते हुए अदालत ने अपराध के समय गैरहाजिर रहे व्यक्ति को भी आरोपी बना देने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है।

राज्य के भागलपुर जिले में हत्या के एक मामले में सज्जन शर्मा नामक व्यक्ति को बरी करने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के कामकाज पर तीखी टिप्पणी की है। वर्ष 1994 के इस मामले में सज्जन शर्मा के पिता सत्तो शर्मा और भाई शंभू शर्मा पर हत्या का आरोप लगाया गया था। सुनवाई के दौरान इन दोनों की मौत हो गई। उसके बाद पुलिस ने नई एफआईआर दर्ज कर सज्जन शर्मा को आरोपी बना दिया जबकि अपराध के समय वह घटनास्थल पर नहीं थे। मामले की सुनवाई करते हुए जिले की नवगछिया कोर्ट ने सज्जन शर्मा को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पटना हाईकोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी थी। इस फैसले के खिलाफ शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर.एम. लोधा की पीठ अदालत ने कहा, 'हमारा अनुभव बताता है कि बिहार में फौजदारी के मुकदमों में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोप तय करने और आरोपी का बयान लेने में पूरा ध्यान नहीं दिया जाता है, जबकि इस तरह के मामलों में यही दो सबसे दो महत्वपूर्ण चरण हैं।'

पटना हाईकोर्ट के जज रहे न्यायमूर्ति आलम और न्यायमूर्ति लोधा की पीठ ने कहा कि आरोपियों से निहायत मशीनी अंदाज में पूछताछ की जाती है। पीठ ने यह उम्मीद जताई है कि राज्य की कुछ अदालतों में हत्या जैसे संगीन मामलों में जिस ढंग से सुनवाई की जा रही है, उस पर पटना हाईकोर्ट ध्यान देगा और सुधार की दिशा में जरूरी कदम उठाएगा। सज्जन शर्मा के मामले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा है कि राज्य में ऐसे और भी निर्दोष हो सकते हैं जिन्हें गलत ढंग से फंसाया गया है। इसके मद्देनजर अदालत ने अपने इस आदेश की प्रतिलिपि पटना हाईकोर्ट की रजिस्ट्री के अलावा राज्य की न्यायिक अकादमी के प्रमुखों को भी भेजने का निर्देश दिया है।

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