देश के 61वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी में राजपथ पर आयोजित भव्य परेड की सलामी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने ली। मेहमान के रूप में दक्षिण कोरिया गणराज्य के राष्ट्रपति ली म्यूंग बक अपनी पत्नी किम यून ओक के साथ मौजूद थे।
इस परेड में भारत की ताकत और आर्थिक समृद्धि का प्रदर्शन किया गया। साथ ही साथ विभिन्न राज्यों की झाँकियों के जरिए अलग-अलग संस्कृतियों ने दर्शकों को मन मोह लिया। 2 घंटे तक चले इस समारोह में सीमा सुरक्षा दल का मोटरसाइकिल सवारों का दस्ता आकर्षण का केन्द्र रहा।
परेड समारोह के पूर्व 61वें गणतंत्र दिवस की परंपरागत शुरुआत 'अमर जवान ज्योति' पर श्रद्धाजंलि से हुई। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सुबह साढ़े नौ बजे के बाद इंडिया गेट स्थित 'अमर जवान ज्योति' स्थल पर पहुँचे और उन्होंने यहाँ पर देश पर कुर्बान होने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके साथ भारतीय सेन के तीनों अंगों के प्रमुखों ने भी सलामी परेड में हिस्सा लिया।
1972 से अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने की थी। यह शुरुआत दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के पश्चात से हुई।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री राजपथ पर: राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह राजपथ पर मौजूद थे। विशेष दर्शकदीर्घा में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, खेलमंत्री एमएस गिल, रेल मंत्री ममता बनर्जी समेत मंत्रिमंडल के कई सदस्य मौजूद थे।
इस बार के गणतंत्र दिवस के मौके पर देश में निर्मित अत्याधुनिक अर्जुन टैंक और मध्यम दूरी की अग्नि 3 मिसाइल का प्रदर्शन किया गया। परेड में एलसीए तेजस का प्रदर्शन भी रखा गया था। परेड में सेना के शक्ति परीक्षण को दर्शक कोतुहल से निहार रहे थे।
राष्ट्रपति ने प्रदान किए अशोक चक्र : परेड शुरु होने के पहले राष्ट्रपति ने सेना में असाधारण वीरता के दिए जाने वाले 'अशोक चक्र' प्रदान किए। दो लोगों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया। मेजर डी. श्रीराम कुमार को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जबकि शहीद मेजर मोहित कुमार को सम्मान उनकी पत्नी मेजर ऋषिमा ने प्राप्त किया जबकि शहीद हवलदार राजेश कुमार का सम्मान उनकी पत्नी बीटा ने प्राप्त किया।
घने कोहरे के कारण परेड पर असर : दिल्ली आज भी मौसम की मार को झेल रहा था। 1995 में भी जब गणतंत्र दिवस की परेड हुई थी, तब भी मौसम का मिजाज कुछ ऐसा ही था। जैसे-जैसे वक्त गुजरतर गया, वैसे-वैसे कोहरे की चादर भी दूर होती गई।
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