14 दिसंबर, 2009

आम आदमी को सालभर सालती रही महँगाई

भारत ने वर्ष 2009 के दौरान ज्यादातर समय या तो नकारात्मक या लगभग शून्य के स्तर के आसपास की महँगाई की दर को देखा। लेकिन मुद्रास्फीति के आँकड़ों की बात अलग है।

आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में इस साल इतनी अधिक बढ़ोतरी हुई कि इसे ‘आम आदमी’ के लिए एक दशक से अधिक का सबसे खराब साल माना जा सकता है। प्याज, आलू और दलहनों की जेब छलनी करने वाली आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी को वर्ष 2009 में डराए रखा।

सरकार की ओर से किए गए प्रशासनिक उपाय खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हुए। चिंतित होकर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा था-आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें हमारे लिए सबसे चिंता का विषय है।

गाँधी ने कहा था कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस मसले पर प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री से बात की है और उन्होंने आश्वासन दिया है कि सरकार इस मसले को सुलझाने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी।

दूसरी ओर भारतीय रिजर्व बैंक का द्वंद्व है कि ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से उबर रही है तो क्या कड़े मौद्रिक उपाय लागू करना उचित होगा।

ताजा आँकड़े दर्शाते हैं कि नवंबर के चौथे सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति बढ़कर 19.05 प्रतिशत हो गई, जिसका मुख्य कारण आलू, प्याज और दलहनों की कीमतों में आई भारी तेजी है। ये तीनों खाद्य वस्तुएँ लोगों के दैनिक उपभोग में आने वाली वस्तुएँ हैं।

वर्ष के दौरान जहाँ आलू की कीमतें दोगुनी बढ़ीं, वहीं दलहन की कीमतें 42 प्रतिशत महँगी हुईं और प्याज 23.4 प्रतिशत महँगा हुआ। विनिर्मित सामग्रियों में चीनी ने सबसे ज्यादा मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान किया।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा था कि जहाँ खाद्य कीमतों पर अंकुश लगाने के लिहाज से मौद्रिक नीतियाँ निष्प्रभावी उपाय हैं, वहीं यह हथियार मुद्रास्फीतिकारी अपेक्षाओं को दूर करने के लिहाज से जरूरी हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक अपने मौजूदा नरम मौद्रिक नीति के रुख की 29 जनवरी को समीक्षा करेगा। हालाँकि सुब्बाराव ने कहा है कि उपभोक्ता कीमतों के मुकाबले थोक मूल्य सूचकांक काफी कम है।

मुद्रास्फीति के मासिक आधार पर आँकड़े जारी करने के अलावा सरकार ने मुद्रास्फीति के लिए आधार वर्ष को 1993-94 के बजाय 2004-05 करने का भी फैसला किया है।

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