12 दिसंबर, 2009

दियारा में शिक्षकों का टोटा, शिक्षामित्र संभाल रहे कमान

राजेश कानोडिया, नवगछिया
स्कूलों में छात्रों को मुफ्त किताब, पोशाक और भोजन की लम्बी चौड़ी व्यवस्था है। यह सब शिक्षा से वंचित बच्चों को विद्यालय से जोड़ने का फंडा है। इसके पीछे सरकार करोड़ों रूपया बहा रही है। पर छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों का ही टोटा है। जी हां, हम बात कर रहे है कोसी पार दियारा क्षेत्र कदवा का। जहां किसी विद्यालय में तीन तो किसी विद्यालय में एक शिक्षक पर आठ-आठ क्लास की जिम्मेदारी है। यहां के स्कूलों में 735 विद्याथियों पर एक भी मूल शिक्षक नहीं हैं। यहां ऐसे हालात वषरें से हैं। विद्यार्थियों का अगर काम चलता है तो वह शिक्षा मित्र योजना के तहत कार्यरत तीन शिक्षकों से। बता दें कि कदवा दियारा के बच्चों के भविष्य को देखते हुए 1962 में राजकीय मध्य विद्यालय की स्थापना हुई थी। लेकिन सरकार व विभागीय पदाधिकारियों की अनदेखी से सभी शिक्षक तबादला कराकर दियारा को सलाम कर गए और बच्चों को शिक्षा मित्र के भरासे छोड़ दिए। विद्यालय भवन भी खपरैल का है वह भी टूटा-फूटा, जिसे किसी तरह से 2001 से स्थानीय श्री गुरुचरण शिक्षा मित्र बनाने के बाद संभाल रखे हैं, जिसमें प्रशांत कुमार एवं रेणु कुमारी नामक शिक्षा मित्रों के सहयोग से पठन - पाठन का कार्य संपादित किया जाता है। जहां वर्ग एक से आठ तक की पढ़ाई करायी जा रही है। कई ग्रामीणों के अनुसार जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को कई बार लिखा गया परन्तु वहीं ढाक के तीन पात वाली कहावत साबित हुई। 2006 में शिक्षकों की बहाली के दौरान भी एक शिक्षक इस विद्यालय को नसीब नहीं हुआ। बहरहाल, दियारा के बच्चों की पढ़ाई से खिलवाड़ कब तक चलेगा पता नहीं।

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