जिसने ज़मीन से उठकर सियासत के आसमान तक का सफ़र किया उसका नाम है वाईएसआर रेड्डी. डॉक्टर येदुगुरी सांदिंती राजशेखर रेड्डी. प्यार से लोग उन्हें वाईएसआर कहते हैं. वाईएसआर का नज़रिया शुरू से साफ़ रहा. वे ग़रीब और निचले तबके के लोगों की आवाज़ बने, किसानों के सच्चे हमदर्द बने और सियासत में आने के बाद आम आदमी के हक़ की लड़ाई लड़ते रहे.
कभी नहीं हारे रेड्डी
जो हार को भी हरा दे, उसे वाईएसआर कहते हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी की शख्सियत का इससे मुकम्मल परिभाषा कुछ और नहीं हो सकती. साठ साल के राजशेखर रेड्डी मंझोले कद के थे, लेकिन व्यक्तित्व में वह ऊंचाई थी, जिसे पराजय की लहरें कभी छू नहीं पायीं. तभी तो कांग्रेस चाहे जीते या हारे लेकिन लोकसभा और विधानसभा के चार-चार चुनाव लड़ने वाले रेड्डी तो हमेशा जीतते ही रहे.
समाज के डॉक्टर थे रेड्डी
आंध्र प्रदेश के रायलसीमा जैसे पिछड़े इलाके में पैदा हुए राजशेखर रेड्डी ने डॉक्टरी की पढ़ाई की और चार साल तक एक अस्पताल में काम भी किया. लेकिन जल्द ही वो इंसानों के डॉक्टर से समाज के डॉक्टर बन गये. 31 साल पहले आंध्र प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने. उसके बाद उनके सियासी कदम हमेशा मंजिलों की नई ऊंचाइयों को नापते रहे. उनकी जिंदगी में सबसे निर्णायक पड़ाव तब आया, जब 14 मई 2004 को आंध्र प्रदेश की बागडोर उनके हाथ में आई.
हर बार चुनाव जीते रेड्डी
राजशेखर रेड्डी ने छात्र जीवन से ही राजनीति की गलियों में कदम रख दिया था. कर्नाटक के गुलबर्गा मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. 1978 में उन्होंने सक्रिय राजनीति शुरू की और चुनाव के मैदान में उतरे. जितनी बार लड़े, उतनी बार जीत हासिल की. 4 बार विधायक रहे, 4 बार ही लोकसभा के सदस्य. 1980 से 1983 तक उन्होंने आंध्रप्रदेश सरकार के अहम मंत्रालयों का ज़िम्मा संभाला. उनके ज़िम्मे था शिक्षा, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य मंत्रालय. 1999 से 2004 तक वे विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और 14 मई 2004 को वे पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वाईएसआर की शख्सियत का ही करिश्मा था कि 2009 के आमचुनावों में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में एक बार फ़िर ज़बरदस्त कामयाबी पाई और वाईएसआर रेड्डी दोबारा राज्य की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे.
कांग्रेस के कद्दावर नेता थे रेड्डी
कांग्रेस पार्टी में भी राजशेखर रेड्डी एक मज़बूत कमांडर की तरह समझे जाते थे. पार्टी ने उन्हें दो बार आंध्र प्रदेश इकाई की ज़िम्मेदारी सौंपी. 1983 से 1985 तक और फ़िर 1998 से 2000 तक वे आंध्रप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
करिश्माई नेता थे रेड्डी
सड़क पर संघर्ष करने से सत्ता के शिखर तक पहुंचना आसान नहीं था. जिस समय एनटी रामाराव जैसे करिश्माई नेता ने आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया, उस मुश्किल हालात में प्रदेश कांग्रेस की कमान राजशेखर रेड्डी को दी गयी. पहले एनटीआर और फिर चंद्रबाबू नायडू के राज में जिस तरह कांग्रेस गुटबंदी का शिकार होने लगी, उसमें राजशेखर रेड्डी ने विधानसभा की गलियारों को नहीं, गांवों को अपनी राजनीति का सेंटर बना दिया.
पैदल चल कर जीता जनता का दिल
पानी के लिए तरसने वाले रायलसीमा इलाके की आवाज जब सत्ता के गलियारों में अनसुनी कर दी गयी, तब अपने सारे विधायकों के साथ रेड्डी भूख हड़ताल पर बैठ गये. लोगों की प्यास बुझाने के लिए रेड्डी अगस्त 2000 में चौदह दिनों तक भूखे रहे. इतना ही नहीं, 2003 की तपती गर्मियों में रालयसीमा के शेर ने चंद्रबाबू नायडू सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए सूबे के पिछड़े इलाकों को अपने पैरों से नाप दिया. 1400 किलोमीटर लंबी उस पदयात्रा का असर ये हुआ कि जनता ने ना सिर्फ साल भर बाद उन्हें सूबे की गद्दी सौंप दी बल्कि पांच साल बाद सत्ता के द्वार पर दोबारा उनका ही स्वागत किया. हर मौके पर खड़ा रहने वाले इस विनम्र राजनेता का चला जाना लोगों को हमेशा खलता रहेगा.
मौत से जंग हारे रेड्डी
वाईएसआर ख़ुद ज़मीन से जुड़े इंसान थे, और ज़िंदगी भर ज़मीन से जुड़े मुद्दे उठाए उन्होंने मुश्किलों से कभी हारना नहीं सीखा. उनके समर्थक कहा करते थे कि वाईएसआर के सामने हार ख़ुद हार जाती है. लेकिन मौत के सामने किसका बस चलता है. हर मोर्चे पर जीतने वाले वाईएसआर रेड्डी, हारे तो सिर्फ़ मौत से हारे.