उधर, जसवंत सिंह ने कहा कि यह पाबंदी किताब पर नहीं, बल्कि सोच पर है। उन्होंने कहा कि वह इसके खिलाफ किसी अदालत में अपील नहीं करेंगे। इस मोर्चे पर भाकपा जसवंत सिंह के समर्थन में आई है। पार्टी ने मांग की कि गुजरात सरकार को तत्काल किताब पर लगी पाबंदी उठा लेनी चाहिए।
जसवंत को भाजपा से निकाले जाने का औपचारिक निर्णय शिमला में ही हुआ। सो, शिमला के लोगों में लगता है जसवंत की किताब को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्सुकता है। किताब के एक कारोबारी एके किंजर ने तो यहां तक कहा कि 40 साल में उन्होंने बाजार में किसी किताब को लेकर लोगों की ऐसी प्रतिक्रिया कभी नहीं देखी। तीन दिन पहले रिलीज हुई किताब खरीदने के लिए लोग उमड़ पड़े हैं।
सीमा पार पाकिस्तान में तो जसवंत के समर्थकों की तादाद अचानक बढ़ गई है। भारत के विभाजन के लिए मुहम्मद अली जिन्ना को दोषी नहीं ठहराए जाने की उनकी दलील पाकिस्तानियों को खूब रास आ रही है। पाकिस्तानी मीडिया में जसवंत की किताब, इसमें जिन्ना पर उनकी राय और इस पर भाजपा की प्रतिक्रिया को खूब कवरेज दिया गया। गुरुवार को तमाम पाकिस्तानी अखबारों ने इस मुद्दे पर संपादकीय तक लिखा।
गुजरात में जसवंत की किताब पर लगी पाबंदी पर बहस चल रही है। राज्य में जहां विपक्षी कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सरकार के साथ है, वहीं भाकपा ने प्रतिबंध को गलत बताया है। भाकपा केंद्रीय सचिवालय से एक बयान जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि भाकपा और तमाम दूसरे लोग जसवंत की राय से सहमत नहीं होंगे, पर लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने का हक है। इसलिए गुजरात सरकार को जसवंत की किताब पर लगाई पाबंदी तत्काल हटा लेनी चाहिए। भाकपा ने इस कदम को 'लोकतंत्र विरोधी' और 'आरएसएस विरोधी विचारों के प्रति असहिष्णुता' करार दिया है। भाकपा के विपरीत, कांग्रेस ने गुजरात सरकार के फैसले को देर से उठाया गया सही कदम बताया है। गुजरात में जसवंत की पुस्तक पहुंचते ही लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया था। लेकिन प्रतिबंध लगने के बाद बुधवार देर रात सभी बुक स्टोर से यह किताब हटा ली गई।
गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्धार्थ पटेल का कहना है कि सरकार का यह कदम घोड़ों के तबेले में से निकलने के बाद ताला लगाने जैसा है।