20 जुलाई, 2009

बिहार पर 54 हजार करोड़ का कर्ज

'कर्ज लेना बुरी बात नहीं है। कर्ज लेकर घी पीना बुरी बात है।' उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को कुछ इसी तर्ज पर विधानसभा में कर्ज की 'महिमा' का बखान किया। उन्होंने माना कि बिहार पर लगभग 54 हजार करोड़ का कर्ज है। लेकिन यह सामान्य बात है। वे भाजपा के विनोद नारायण झा के सवाल का जवाब दे रहे थे। इस तरह अगर राज्य के उपमुख्यमंत्री के बयान को आधार माना जाए तो वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य के हर नागरिक पर करीब साढ़े छह हजार रुपए का कर्ज बैठता है।

श्री मोदी ने कहा-'कर्ज, एक मायने में विकास का प्रतीक है। दुनिया के तमाम विकसित देश सबसे अधिक कर्ज में हैं। भारत सरकार और देश के कई विकसित राज्यों पर बिहार से कई गुना अधिक कर्ज है। आर्थिक विकास के लिए कर्ज निहायत जरूरी है।' उन्होंने इस क्रम में गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों का व्यापक दिया। उनका दावा रहा कि हम कर्ज का सदुपयोग कर रहे हैं। आधारभूत संरचना विकसित हो रही है। विकास योजनाएं मुकाम पा रही हैं। कर्ज के रुपये से वेतन-पेंशन नहीं बंट रहा है, जैसा कि पिछली सरकारों में होता था। उन्होंने स्वीकार किया कि 2008-09 में 4834.88 करोड़ की ऋण उगाही की गयी। इसमें नाबार्ड का 495.16 करोड़, बाह्य संपोषित योजना में केंद्र के माध्यम से 149.86 करोड़, राष्ट्रीय लघु बचत के निवेश से 792.93 करोड़ एवं बाजार से 3396.93 करोड़ का ऋण शामिल है। मार्च 09 तक प्रदेश पर 53,277 करोड़ का कर्ज था। इसके बाद भी यह बढ़ा है। 2009-10 में बिहार सरकार 6000 करोड़ कर्ज लेने की हकदार है। श्री मोदी द्वारा पेश किये गये आंकड़ों के अनुसार बिहार पर कर्ज लगातार बढ़ता गया है। यह 1991 में 10,633 करोड़ था। 1992, 93, 94, 95, 96, 97, 98, 99, 2000, 01, 02, 03, 04, 05, 06 व 2007 तथा 2008 में यह क्रमश: 11,777 करोड़, 13551 करोड़, 14752 करोड़, 16701 करोड़, 18695 करोड़, 20752 करोड़, 23584 करोड़, 27109 करोड़, 32866 करोड़, 29942 करोड़, 34135 करोड़, 38254 करोड़, 39999 करोड़, 43183 करोड़, 47290 करोड़, 49850 करोड़ व 49903 करोड़ रुपये हो गया।

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