सूर्यग्रहण खत्म हो गया, लेकिन समाज पर अंधविश्वास का ग्रहण अब भी लगा है. कर्नाटक में गुलबर्गा के 3 इलाकों में 108 बच्चों को ग्रहण के दौरान जमीन में गाड़े रखा गया. मासूमों का कसूर बस इतना था कि ये मानसिक रूप से कमजोर हैं और इन पर जुल्मोसितम इलाज के नाम पर किया गया.
बीमारी दूर करने के लिए बच्चों को गाड़ा
गुलबर्गा के इस इलाके में ऐसी मान्यता है कि सूर्यग्रहण के दौरान अगर ऐसे बच्चों को तालाब के पास जमीन में गले तक गाड़ दिया जाए तो उनकी बीमारी ठीक हो जाती है. ऐसा करने से बच्चों में ताकत और बुद्धि आती है. इसे अंधविश्वास या अक्ल पर ग्रहण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, दुनिया जब सदी के सबसे बड़ा सूर्यग्रहण का नजारा ले रही थी, गुलबर्गा में कुछ लोग गड्ढा खोदने में लगे थे.
एक भारत आसमान के रहस्यों को खंगाल रहा था, तो दूसरा भारत ज्ञान की जमीन खोदने में लगा था. नगड्ढा खोदा जाता है, बच्चों को उसमें डालकर मिट्टी भरा जाता है. बच्चे रोते-बिलखते हैं, लेकिन किसी को इन पर रहम नहीं आता. रहम आता भी कैसे? लोगों की आंखों पर अंधविश्वास की चर्बी जो चढ़ी थी.
ग्रहण खत्म होने तक रोते-बिलखते रहे बच्चे
पूरे 108 बच्चों को गुलबर्गा के तीन इलाकों में स्वयंसेवी संस्था नव तरुण संघ के लोगों ने तालाब के किनारे मिट्टी में गाड़ दिया गया. सूर्यग्रहण खत्म होने के बाद बच्चों को गड्ढे से निकाला गया. इसके बाद स्वयंसेवियों ने सभी बच्चों की तेल मालिश की. बच्चे तब तक रोते-बिलखते रहे जब तक सूर्यग्रहण खत्म नहीं हो गया. खबर है कि इस तरह मिट्टी में दबे-दबे कुछ बच्चों की तबीयत भी खराब हो गई. हैरानी की बात ये है इतने बड़े पैमाने पर ये सब होता रहा, लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी. पुलिस को जब इत्तला मिली तो जांच का वादा कर एसपी ने मामले से पल्ला झाड़ लिया.