10 मई, 2009

माँ

माँ
कितना प्यारा अहसास है
इस शब्द में कुछ खास हे
लेता हु जब में माँ शब्द
लगता हे मुह में मिसरी घुल गई हो
पर आज देखता हु में वृधा आश्रम
तो आँखे बरबस ही नीची हो जाती है
आज हम कितने कमीने हो गए
छोड़ दिया हमने उनको जिनके आँचल
की छाव मे न जाने कितनी गरमा निकल गई
झुलस गई ख़ुद पर कभी आंच न आई हमको
लगता आज हम अपनों से पराये हो गए
और परयो के अपने हो गए
पर कसम हे सबको भुला दो हमको
करो याद सबसे पहले माँ को

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