21 जुलाई, 2012

आज रवाना होगी कौंसर नाग की छड़ी यात्रा

राजेश डोगरा, रियासी

शिव स्थान कौंसरनाग की तीसरी छड़ी यात्रा 21 जुलाई शनिवार को महात्मा स्वामी राम शरण दास महाराज के नेतृत्व में बारादरी स्थित राम मंदिर से रवाना होगी। यात्रा को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। यात्रा में रियासी, माहौर व चसाना आदि कई स्थान से श्रद्धालु शामिल होंगे। श्रद्धालु रियासी से वाहनों में रवाना होंगे। 21 की रात श्रद्धालु सुंगड़ी चसाना में विश्राम के बाद अगले दिन पैदल सफर शुरू कर 23 जुलाई को सुबह कौंसरनाग मानसरोवर पहुंचेंगे। पवित्र मान सरोवर में स्नान कर पूजा-अर्चना के बाद उसी दिन वापस लौटेंगे।

यात्रा का एक तरफ का पैदल सफर लगभग तीस किलोमीटर लंबा है, जिसमें करीब पौना किलोमीटर सफर बर्फ के बीच से होकर तय करना पड़ता है। विकास से कोसों दूर व प्रसिद्धी न मिलने के कारण इस स्थान के बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है। क्षेत्रवासी छोटे छोटे दलों में इस स्थान के दर्शन करने जाते रहे हैं, लेकिन छड़ी यात्रा तीन साल पहले शुरू हुई थी। 21 जुलाई को तीसरी बार छड़ी यात्रा का जत्था रियासी से कौंसर नाग मानसरोवर के लिए रवाना होगा। यात्रा में शामिल भक्तों के विश्राम व भोजन पानी का प्रबंध स्थानीय लोगों द्वारा ही किया जाता है। रियासी जिला के गुल गुलाबगढ़ क्षेत्र में पड़ने वाले कौंसर नाग मानसरोवर को क्षेत्रवासी भगवान शिव के अमरनाथ, मणिमहेश, कैलाश कुंड, बुढ्डा अमरनाथ व सुद्धमहादेव आदि जैसी मान्यता वाला स्थान मानते हैं। जम्मू की तरफ से रियासी के रास्ते और कश्मीर घाटी से कुलगाम के रास्ते से होकर इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है।

मान्यता है कि एक बार भगवान शिव मां पार्वती के साथ इस स्थान से गुजर रहे थे। इस दौरान मां पार्वती को प्यास लगी। भगवान शिव ने एक पहाड़ पर जोर से पांव मारा, जिससे वहां विशाल झील बन गई। यह झील काफी लंबी चौड़ी और पांव की शक्ल जैसी है। इस स्थान पर पेड़ व झाड़ियां नहीं हैं। सावन माह में झील का पानी गर्म होना शुरू हो जाता है और बर्फ पिघल जाती है। गर्मियों में बर्फ पिघलने पर जलस्तर बढ़ जाता है। कौंसर नाग मानसरोवर से कोई नदी नहीं निकलती। ऐसे में झील का पानी कहां जाता है यह रहस्य है। यह भी कहा जाता है कि आज तक कोई भी एक दिन में मानसरोवर का चक्कर नहीं लगा पाया है और न ही किसी एक स्थान से पूरा मानसरोवर नजर आता है। मान्यता है कि इस स्थान के दर्शन करने से मन को शांति व वही पुण्य प्राप्त होता है, जैसा अमरनाथ व मणिमहेश आदि जैसे स्थान से प्राप्त होता है।

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