किसी भी शुभकार्य को शुरू करने में बजने वाले शंख से लेकर ईसा पूर्व 1500 साल पुराने ‘डंग चेन’ तक तथा बिहू और भाँगड़ा से लेकर योग की सीख तक राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह में यहाँ भारतीय संस्कृति और अनेकता में एकता का अद्भुत नजारा देखने को मिला।
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित भव्य समारोह में भारतीय संस्कृति के अनुरूप उद्घाटन की शुरुआत शंखनाद से हुई और फिर डंग चेन ने दर्शकों का मन मोह लिया। शंख और डंग चेन की ध्वनि एक साथ आसमान में गूंजने लगी तो लगा मानो कोई बड़ा धार्मिक आयोजन शुरू होने वाला है। डंग चेन भारत के सबसे पुराने वाद्य यंत्रों में शामिल है।
यदि शंख बजाकर शुरुआत की जाती है तो नगाड़ा भी कभी पीछे नहीं रहा है। नगाड़ों पर उलटी गिनती शुरू हुई और जैसे ही यह शून्य पर पहुँची तो फिर स्टेडियम में चारों तरफ से शंखनाद होने लगे।
भारतीय वाद्य यंत्रों के नजारे की तो यह महज शुरुआत थी। इसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों के ड्रम वादकों ने दर्शनीय छठा बिखेरकर विदेशी दर्शकों को भी झूमने के लिए मजबूर कर दिया। इसकी शुरुआत मणिपुर के विशिष्ट शास्त्रीय नृत्य ‘पंग चोलम’ से हुई जो मणिपुरी संकीर्तन संगीत और मणिपुर नृत्य पर आधारित है। इसमें नर्तक ड्रम बजाते हुए नृत्य कर रहे थे।
पंजाब के भाँगड़ा के साथ तो मानो हर दर्शक थिरक उठा तो उत्तर भारत के ढोलू कुनीता, गाजा ढोल और बंगाल के ड्रम वादकों ने भी लाजवाब प्रदर्शन कर समां बाँध दिया। नगाड़ा और विशेषकर बीन की ध्वनि ने कानों में रस माधुरी घोल दी। कोया ड्रम वादकों और विशेषकर नन्हें से तबला वादक केशव के लिए तो स्टेडियम में मौजूद हर दर्शक ने तालियां बजायी । पहले केशव तबले पर थाप छोड़ता और ड्रमवादक उनकी लय को आगे बढ़ाते। जुगलबंदी का यह अद्भुत नजारा विविध संस्कृति वाले भारत में ही देखा जा सकता है।
खेलों के वालेंटियारों को शुरू में ही सिखाया गया था कि वह मेहमानों का अभिवादन ‘नमस्ते’ कहकर करें तो फिर उद्घाटन समारोह में भला इसे कैसे बिसार दिया जाता। मेहमानों का स्वागत नमस्ते और भारतीय संविधान में दर्ज 18 भाषाओं में किया गया।
राष्ट्रमंडल खेलों का यह समारोह किसी मेले या शादी से कहीं अधिक भव्य और आलीशान था। ऐसे मे भला मेहंदी छूट जाती तो फिर बात अधूरी रह जाती। शादियों, दीवाली, रक्षाबंधन, भैया दूज, ईद, करवा चौथ आदि त्यौहारों पर महिलाओं के हाथों में सजने वाली मेंहदी का हुनर भी इस समारोह का हिस्सा बना।
भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से ही रचा बसा योग आज पश्चिमी देशों में अपनी जड़ें जमा चुका है लेकिन आज यहां पूरे स्टेडियम में एथलेटिक योग का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिला । योग को अक्सर सूर्योदय के समय किया जाता है और ऐसे में योग कर रहे कलाकारों ने चमकते सूर्य की आकृति बनाई।
सात चक्र भारतीय संस्कृति का अहम अंग रहे है। ये सातों चक्र बीजा मंत्र लॉम, वॉम, रॉम, यॉम, हॉम, शॉम और ॐ के बैकग्राउंड संगीत के साथ अवतरित हुए। कुंडलिनी योग और पदमासन का विशेष रूप से प्रदर्शन किया गया तो इस बीच वेदिक मंत्र, बौद्व श्लोकों, मंत्रों, अजान और गुरूवाणी के जरिये दिखाया गया कि भारत किस तरह सभी धर्मो को अपने मे समेट कर उन्हें पूरा सम्मान देता है।
‘ग्रेट इंडियन जर्नी’ में भारतीय बाजार, महिलाओं द्वारा धान की कटाई, किसानों का खेत जोतना, और धोबी घाट का नजारा पेश किया गया। ग्रामीण भारत की झलक रिक्शा, ऑटो, मछुआरों, दूधवाले, हाकर, चायवाले और कारीगरों के जरिये पेश की गई।
बाजार में पुराने से लेकर आधुनिक समय तक की वस्तुओं को पेश किया गया। इनमें मिठाइयों की दुकान भी शामिल थी। उदघाटन समारोह में राजनीतिक नजारों को भी नहीं छोड़ा गया और राजनीतिक रैली का नजारा एक गाड़ी पर लगे कई लाउडस्पीकर के जरिये दिखाया गया। सिलिकान वैली और बॉलीवुड के जरिये फलती फूलती भारतीय संस्कृति भी पेश की गई।
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