30 दिसंबर, 2009

कभी विधायक नहीं बन सके शिबू सोरेन

झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में बुधवार को शपथ लेने वाले शिबू सोरेन की किस्मत भी अजीब रही है। तीन बार मुख्यमंत्री बनने वाले झामुमो सुप्रीमो कभी विधानसभा के लिए निर्वाचित नहीं हो सके।

वर्ष 2005 में झारखंड विधानसभा के लिए पहले चुनाव हुए थे और त्रिशंकु विधानसभा के हालात में दो मार्च 2005 को सोरेन पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।

उस समय सोरेन लोकसभा सदस्य थे और उन्हें चुनाव लड़ने का भी मौका नहीं मिल पाया क्योंकि अपना बहुमत साबित करने में विफल रहे गुरुजी को नौ दिनों के बाद अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री मधु कोडा की सरकार के पतन के बाद गुरुजी दूसरी बार 27 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री बने। उस समय भी वे लोकसभा के सदस्य थे और संविधान के प्रावधानों के अनुसार छह महीने के भीतर उन्हें राज्य विधानसभा के लिए सदस्य चुना जाना अनिवार्य था।

तब सोरेन ने तमाड़ सीट से उपचुनाव लड़ा। इस वर्ष तीन जनवरी को हुए उपचुनाव में झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर ने उन्हें 10 हजार से अधिक मतों से पटखनी दे दी।

सोरेन के पास कोई चारा नहीं था। 12 जनवरी को उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसके बाद किसी ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया, जिसके चलते झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

सोरेन अब भी विधानसभा सदस्य नहीं है और उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा के लिए निर्वाचित होना अनिवार्य है। झामुमो प्रवक्ता रमेश हंसदा ने कहा कि अभी तक हमने निर्णय नहीं किया है कि गुरुजी किस सीट से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन संथाल परगना क्षेत्र से उनके चुनाव लड़ने की संभावना है। वर्ष 2000 में गठित झारखंड में अभी तक चार मुख्यमंत्री हुए हैं और सभी आदिवासी हैं।

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