पूजन विधि
गोधूलि बेला में स्नान के बाद वस्त्र धारण कर पूजन स्थल पर भगवती लक्ष्मी-श्री गणेश की तस्वीर या मूर्ति के समक्ष आसन ग्रहण कर लें फिर पूजन सामग्री और स्वयं का शुद्धिकरण करते हुए गंगा जल छींटें और रोली का तिलक धारण करें। इसके बाद कलश स्थापित करते हुए गौरी-गणेश, नवग्रह, पंच देवता, दशदिग्पाल आदि की पूजा के पश्चात षोड्षोपचार विधि से माता धनदेवी माता लक्ष्मी और बुद्धि-विवेक के देवता श्री गणेश की पूजा करें। फिर दीपदान कर आरती करें। इस पूजन से घर में लक्ष्मी का वास होने के साथ ही बुद्धि व विवेक की भी प्राप्ति होती है। अमावस्या पर श्री लक्ष्मी-गणेश के साथ भगवान विष्णु, शिव, मां काली, सरस्वती, कुबेर आदि देवताओं का पूजन भी विशेष फल देने वाला है।
शनि के बाद करें लक्ष्मी पूजन
शनिचरी अमावस्या के दिन पड़ने से अबकी दीपावली का महत्व कुछ बढ़ गया है। इस दिन लक्ष्मी पूजन के साथ शनि के पूजन का भी विशेष महत्व है। ग्रह नक्षत्रम ज्योतिष शोध संस्थान के निदेशक आशुतोष वाष्र्णेय के मुताबिक जो जातक शनिदेव की साढे़ साती या ढैय्या से ग्रसित हैं उनके लिए तो यह दिन काफी महत्वपूर्ण होगा। शनि के साथ लक्ष्मी पूजन से उन्हें शनि देव के प्रकोप से कुछ राहत मिलने के साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी हासिल होगी।
भाव की भूखी हैं मां लक्ष्मी
भगवती लक्ष्मी भक्तों के भाव की भूखी हैं। इसलिए इनके पूजन में सामग्री नहीं बल्कि भाव का होना बहुत जरूरी है। एक नगर में एक सेठ हुआ करता था उसके पास वैभव की कोई कमी नहीं थी वहीं एक निर्धन व्यक्ति था। दोनों ने महालक्ष्मी की कृपा पाने के लिए पूजन किया। सेठ ने मां को बादाम-काजू, पिस्ता के लड्डू का भोग लगाया जबकि निर्धन व्यक्ति भोग की व्यवस्था नहीं कर सका किंतु उसने मां लक्ष्मी का पूरे भाव से पूजन किया। लक्ष्मी माता उक्त निर्धन व्यक्ति के भाव से प्रसन्न हुई और उसे धन-वैभव से लाद दिया जबकि भाव न होने से सेठ के भोग को अस्वीकार कर दिया। अत: लक्ष्मी पूजन में भाव बहुत जरूरी है।