भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में स्वच्छता आंदोलन का अलख जगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. बिन्देश्वरी पाठक को इस वर्ष के 'स्टाकहोम वाटर प्राइज' से सम्मानित किया गया है।
स्थानीय सिटी हाल में आयोजित पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में स्वीडन के प्रिंस कार्ल फिलिप ने सुलभ आंदोलन के प्रणेता डॉ. पाठक को एक लाख 50 हजार अमेरिकी डॉलर की राशि एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। इस पुरस्कार को पर्यावरण के क्षेत्र का नोबल पुरस्कार समझा जाता है।
इस अवसर पर स्टाकहोम इंटरनेशनल वाटर इंस्टीट्यूट (एसआईडब्ल्यूआई) के कार्यकारी निदेशक एंडर्स बर्नटेल ने कहा कि स्वच्छता के क्षेत्र में हमारी प्रगति की जो मौजूदा दर है, उससे यह साफ झलकता है कि 2015 का सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) हम हासिल नहीं कर पाएँगे। इसके लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत है।
गौरतलब है कि समुचित स्वच्छता सुविधाओं के अभाव में पूरी दुनिया में प्रतिदिन पाँच हजार बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं तथा दो अरब 60 करोड़ से अधिक लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। इतना ही नहीं विकासशील देशों में अस्पतालों के आधे बिस्तर स्वच्छता संबंधी बीमारियों से प्रभावित लोगों से भरे होते हैं।
वाटर सप्लाई एवं सैनिटेशन कालैबोरेटिव काउंसिल (डब्ल्यूएसएससीसी) के कार्यकारी निदेशक जॉन लेन ने इस मौके पर कहा कि स्वच्छता संबंधी समस्या का हल आसान नहीं, बल्कि काफी जटिल है। इसके समाधान के लिए राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों, उद्यमियों, प्रौद्योगिकीविदों, फाइनेंसरों और परोपकार में जुटे लोगों को विशेष भूमिका निभानी होगी।
इस अवसर पर डॉ. पाठक ने स्वच्छता संबंधी चुनौतियों की अंतरराष्ट्रीय महत्ता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जल के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए इतने महत्वपूर्ण पुरस्कार दिये जा रहे हैं, जो बड़ी बात है। ठीक इसी तरह के प्रयास स्वच्छता के क्षेत्र में भी किए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता हर व्यक्ति को खासकर महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा प्रदान करती है। इतना ही नहीं, इससे बाल मृत्यु दर में भी कमी आती है। किसी स्वस्थ समुदाय के लिए समुचित जल प्रबंधन के साथ ही स्वच्छता के साधन भी आवश्यक होते हैं।
अपने प्रशस्ति पत्र में पुरस्कार चयन समिति ने कहा कि डॉ. पाठक के प्रयासों का फल इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किसी तरह कोई अकेला व्यक्ति लाखों लोगों के जीवन को सुखद बना सकता है। डॉ. पाठक के इस प्रयास को न केवल वे लोग ही जानते हैं, जिन्हें उनके प्रयास से नारकीय जिंदगी से मुक्ति मिली है बल्कि पूरी दुनिया इसे पहचानती है।
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