22 अगस्त, 2009

'भारत में 11 करोड़ और गरीब'

भारत सरकार की एक समिति के आँकड़ों के अनुसार भारत मे गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वालों की संख्या में 10 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। ये नए आँकड़े एसडी तेंडुलकर की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने दिए हैं।
इस समिति की रिपोर्ट को मानें तो पहले से गरीबी रेखा के नीचे जी रही आबादी में 11 करोड़ लोग और जुड़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल आबादी का कम से कम 38 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जीता है।
हालाँकि इस रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन इस रिपोर्ट के आँकड़ों का जिक्र खाद्य सुरक्षा विधेयक को तैयार करने के लिए दिए गए पृष्ठभूमि दस्तावेजों में किया गया है।
इन नए आँकड़ों पर पहुँचने के लिए तेंडुलकर समिति ने नई प्रणाली का इस्तेमाल किया है। इस विधि के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मानक प्रयोग किए गए हैं।
योजना आयोग से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार गरीबी के नए आँकड़ों का पता लगाने वाली नई विधि काफी जटिल है। उनके अनुसार इस विधि में पहले की चिंताओं और शंकाओं का निदान करने का प्रयास किया गया है।
खर्च : नए आँकड़ों का मतलब ये हुआ कि भारत सरकार को इस तबके को खाद्य सुरक्षा पर ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। पिछले चार साल में सरकार ने गरीबी उन्मूलन से जुड़ी अपनी कुछ योजनाओं पर एक करोड़ 51 लाख 460 करोड़ रुपए खर्च किया है और आने वाले समय में ये खर्च और बढ़ेगा।
तेंडुलकर समिति के हिसाब से सरकार को खाद्य अनुदान पर नौ हजार 500 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने होंगे। भारत मे गरीबी के आँकड़े और इन आँकड़ों को जुटाने की विधि को लेकर विवाद रहा है।
इसी साल जून में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है। वर्ष 2007 में बनी अर्जुन सेनगुप्ता रिपोर्ट में ये आँकड़ा 77 प्रतिशत बताया गया था।
जबकि इसी साल जून में बनी ग्रामीण विकास मंत्रालय की एनसी सक्सेना समिति ने कहा था कि भारत की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है।

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