25 सितंबर, 2010

स्टिंग ऑपरेशन में पत्रकारों को राहत

ऑपरेशन दुर्योधन के नाम से एक निजी टीवी चैनल पर दिखाए गए स्टिंग ऑपरेशन में पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने वाले सांसदों के मामले को उजागर करने वाले पत्रकारों को अदालत से राहत मिल गई है। उच्च न्यायालय ने कहा कि उनकी मंशा सिर्फ भ्रष्टाचार को उजागर करना थी। उनका कार्य अपराध नहीं है। न्यायमूर्ति एसएन धींगरा ने आरोपी पत्रकार अनिरुद्ध बहल व सुहाषिनी राज के खिलाफ दायर आरोप पत्र व उनको जारी समन को रद करते हुए कहा कि उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को अगर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत फंसा दिया जाएगा तो यह न्याय प्रक्रिया का मजाक होगा और संविधान के तहत नागरिकों को दिए गए कर्तव्यों के तहत इस तरह का साहस दिखाने वालों को हतोत्साहित करना होगा। पुलिस का कहना था कि इन्होंने स्टिंग के दौरान रिश्वत दी है जो कि एक अपराध है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में स्टिंग करने वाले की मंशा देखी जाती है। जबकि पुलिस ने इस स्टिंग को देखने के बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की। अगर सच में पुलिस इच्छुक थी तो उसे अगले दिन ही प्राथमिकी दर्ज कर लेनी चाहिए थी। बारह दिसंबर 2005 को यह स्टिंग प्रसारित हुआ और सारे देश ने देखा। लोकसभा व राज्यसभा की तरफ से दो समितियां गठित की गई। डेढ़ साल बाद संसद मार्ग थाने में दर्ज मामले में इन दोनों पत्रकारों को मुख्य आरोपी बना दिया। बाद में इन पत्रकारों की याचिका पर उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस उन सबके खिलाफ मामला दर्ज करे जिनको टेप में पैसे लेते दिखाया गया है। तब जाकर पुलिस ने अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया। दिल्ली पुलिस ने 9 जून 2009 को इस मामले में पूर्व 11 सांसद व दो पत्रकारों सहित अन्य के खिलाफ तीस हजारी अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। जबकि इस मामले में एक सांसद राजा रामपाल व पांच अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था। पेश मामले में 12 दिसंबर 2005 को आपरेशन दुर्योधन नामक एक स्टिंग में खुलासा किया गया था कि किस तरह 12 तत्कालीन सांसदों ने फर्जी कंपनी निशमा की मालकिन बनी पत्रकार सुहाषिनी राज से पैसे लेकर लोकसभा व राज्यसभा में सवाल पूछे थे। अदालत ने संविधान में दिए कर्तव्यों की याद दिलाई हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचारमुक्त समाज के लिए काम करते हुए इसे हर स्तर पर उजागर करे। संविधान में अधिकार है कि कोई भी नागरिक भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए एजेंट बनकर काम कर सकता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि देश में भ्रष्टाचार जड़ जमा चुका है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में सलाह दी थी कि जजों की ईमानदारी को भी समय-समय पर जांचा करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने पुलिस की उस दलील को अस्वीकार कर दिया कि पत्रकारों को स्टिंग से पहले सीबीआई को सूचित करना चाहिए था। अदालत ने कहा कि अगर पत्रकार सांसदों द्वारा पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में स्टिंग करने से पहले पुलिस को सूचित करते तो यह स्टिंग हो ही नहीं पाता। क्योंकि स्टिंग होने से पहले ही संबंधित सांसदों को सूचना मिल जाती। अदालत ने कहा कि जब कभी भी भ्रष्टाचार के मामले में शक्तिशाली लोगों के खिलाफ शिकायत की जाती है तो पुलिस या सीबीआई कैसे काम करती है यह सब बताने की जरूरत नहीं है। भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों का हश्र देश देख चुका है। कभी उनको प्रताडि़त किया जाता है तो कभी झूठे मामले में फंसा दिया जाता है या फिर मार भी दिया जाता है।

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