19 अगस्त, 2009

टल जायेगा मालिक-किरायेदार के बीच का विवाद

प्रस्तावित किराया नियंत्रण कानून असर में आ जाने के बाद मकान मालिक और किरायेदारों के बीच आये दिन की किचकिच, तकरीबन खत्म हो जायेगी। सरकार ने इसका मसौदा तैयार कर लिया है। प्रारूप पर विधि विभाग से राय ली गयी है और इसमें महाधिवक्ता की आपत्ति व सुझाव का भी समावेश किया जायेगा। विधानमंडल के अगले सत्र में इससे संबंधित विधेयक सदन में भी प्रस्तुत किया जाना है। यह कानून बन जाने के बाद मकान मालिक और किरायेदार के बीच एक एग्रीमेंट होगा और मामूली शुल्क पर निबंधन कार्यालय में उसका निबंधन होगा। नगर विकास सचिव दीपक कुमार के अनुसार इस कानून का मकसद भवन उद्योग को बढ़ावा देना है ताकि लोग भवन, दुकान और मकान का निर्माण किराये पर देने के लिए भी करायें। मौजूदा कानून में किरायेदार का पलड़ा भारी है। ऐसे में लोग सिर्फ रहने के लिए मकान बनवाने पर प्राथमिकता दे रहे हैं, किराये पर लगाने के लिए नहीं। वैसे नगर विकास विभाग पिछले पांच-छह सालों से इस दिशा में कवायद कर रहा है। केन्द्र के माडल कंट्रोल एक्ट के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बंगाल आदि के रेंट कंट्रोल एक्ट को बहुत पहले ही मंगाकर विभाग ने अध्ययन कर लिया है। मगर अभी तक यह ठोस आकार नहीं ले पाया है। अब ब्रिटेन के डीएफआईडी (डिपार्टमेंट फार इंटरनेशनल डेवलपमेंट) की मदद से किराया नियंत्रण कानून को अंतिम रूप दिया जा रहा है। केन्द्रीय मदद के लिए नगरीय सुधार योजना में भी किराया नियंत्रण कानून का निर्माण एक अनिवार्य शर्त है। वर्तमान में किराये से संबंधित विवाद की स्थिति में मकान खाली कराने के लिए अदालत की शरण में जाना पड़ता है। किरायेदार कोर्ट में किराये की राशि जमा करा देता है और अदालत में मामला वर्षो चलता रहता है। बड़ी संख्या में ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं जिनमें किरायेदार पिछले कई दशक से मामूली किराये पर रह रहा है और उसे खाली कराने के लिए मकान मालिक को अदालत का चक्कर लगाना पड़ रहा है। इस तरह के संकट को देखते हुए प्रस्ताव तैयार किया गया है कि गृह स्वामी और किरायेदार के बीच 11 माह का एग्रीमेंट होगा। मामूली शुल्क पर उसका निबंधन होगा। प्रस्ताव के अनुसार सम्पत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 107 के प्रावधानों के होने पर भी उस समय सीमा के अंतर्गत एकरारनामा को उक्त प्रयोजन के लिए ऐसा दस्तावेज माना जायेगा जिसका निबंधन उक्त अधिनियम की धारा 17 के अंतर्गत अनिवार्य होगा। एग्रीमेंट का नियमित अंतराल पर नवीनीकरण होगा और किराये में वृद्धि का प्रावधान भी रहेगा। एग्रीमेंट की अवधि खत्म हो जाने पर किरायेदार बाहर। इसके बावजूद कोई विवाद होने पर जिलाधिकारी स्तर के अधिकारी एविक्शन अथारिटी के रूप में इस मामले की सुनवाई करेंगे। कानून में सैनिकों, पूर्व सैनिकों या इनके आश्रितों का विशेष ध्यान रखा गया है।

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