बांदा। इसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा का नाम दें या फिर महिला सशक्तीकरण । बुंदेलखण्ड की बदहाल धरती में 'गुलाबी गैंग' के बाद अब नया महिला संगठन 'बेलन गैंग' उभार पर है। दोनों संगठनों की महिलाओं में मामूली फर्क है। गुलाबी गैंग में महिलाओं की पहचान जहां 'डंडा' है, वहीं बेलन गैंग से जुड़ी महिलाएं आन्दोलन के वक्त 'बेलन' से लैस रहती हैं।
बदहाल बुंदेलखण्ड में राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में महिलाएं हाशिए पर थीं। जब पिछले पांच साल के दौरान महिलाएं घर का चूल्हा-चौका छोड़ खुद से जुड़े मुद्दों पर सड़कों पर उतरीं, तब किसी ने यह नहीं माना था कि अब आधी आबादी अपनी आजादी की लकीर खींच रही है।
सम्पत पाल की अगुवाई में गठित 'गुलाबी गैंग' ने देश ही नहीं, विदेशों में भी शोहरत हासिल की। नतीजा यह रहा कि उन्हें पेरिस और इटली से भी महिला सशक्तीकरण पर आमंत्रण मिले।
कांग्रेस ने बुंदेली धरा में राजनीतिक फायदा लेने की गरज से सम्पत को विधानसभा का चुनाव क्या लड़ाया, इससे तो संगठन की साख को नुकसान पहुंचा। इसी मौके का फायदा उठाते हुए बांदा मुख्यालय की रहने वाली पुष्पा गोस्वामी शहरी महिलाओं को एकजुट कर 'बेलन गैंग' नाम से नया संगठन बनाकर चर्चा में आ गई हैं।
गुलाबी गैंग की महिलाओं ने जहां अपने आंदोलन के दौरान 'गुलाबी साड़ी' और 'डंडे' को हथियार बनाया, वहीं बेलन गैंग की महिलाओं ने 'बेलन' को प्राथमिकता दी है। इस संगठन से जुड़ी महिलाओं ने उन सभी मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल किया, जिनसे महिलाएं अक्सर प्रभावित होती हैं। बिजली, पानी के अलावा स्वास्थ्य की अव्यवस्था हो या फिर रसोई गैस की कालाबाजारी। सभी मामलों में शहरी महिलाएं आंदोलन करती नजर आ रही हैं।
पुष्पा बताती हैं कि रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले संसाधनों से अक्सर महिलाओं को ही जूझना पड़ता है। पुरुष महिलाओं की परेशानी से नावाकिफ रहते हैं। इसलिए अपने एजेंडे में उन्होंने ऐसे मुद्दे शामिल किए हैं।
गुलाबी गैंग की वाइस कमांडर सुमन सिंह चौहान स्वीकार करती हैं कि सम्पत के विधानसभा चुनाव लड़ने से संगठन पर राजनीतिक दल का ठप्पा लगा है और वह मुद्दों से भी भटका है। हालांकि वह कहती हैं कि जितने संगठन बनेंगे, आधी आबादी उतनी ही मजबूत होगी।
गुलाबी गैंग की प्रमुख सम्पत पाल का कहना है कि मैं कांग्रेस से चुनाव जरूर लड़ी हूं, पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को मैंने पीछे नहीं धकेला। मेरा पूरा ध्यान संगठन में पुरानी ऊर्जा लाने पर है।
वामपंथ से जुड़े बुजुर्ग अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान महिलाओं के उभरते संगठनों को अच्छा संकेत मानते हैं। उनका कहना है कि अतीत में भी महिलाओं की भूमिका अहम रही है। 90 फीसदी महिलाएं घरेलू या बाहरी हिंसा का शिकार होती हैं। कम से कम अब कुछ तो रोक लगेगी।
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