राजधानी के माँस व्यापरियों और सरकार के एक दशक से अधिक समय से एक मुद्दे पर विवाद करने और लगातार शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के चलते उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को दोनों पक्षों को जमकर फटकार लगाई और कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत अनिश्चितकाल तक इस विवाद की निगरानी नहीं कर सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि न तो माँस व्यापारी स्थानांतरण से इनकार कर सरकार को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं और न ही सरकार उनकी समस्याओं को हल करने से इनकार कर सकती है।
न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने माँस व्यापारियों और बूचड़खाने के व्यापार से जुड़े अन्य लोगों को अपनी समस्याओं के बारे में प्रशासन से संपर्क करने के निर्देश दिए और आगाह किया कि अगर सरकार अपने कर्तव्य के निर्वहन में नाकाम रहती है तो अदालत सरकार से काम करवा सकती है।
न्यायमूर्ति सायरिएक जोसेफ और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा भी इस पीठ के सदस्य थे। सरकार के वकील के माँस व्यापारियों के मामले पर ‘विचार’ करने की बात कहने पर पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा कि विचार करने का सवाल ही नहीं उठता। आप इसे करें। हम कोई भी विलंब बर्दाश्त नहीं करेंगे। अगर सरकार नहीं करती है तो हम जानते हैं कि इसे कैसे करवाया जाता है।
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