30 जुलाई, 2009

बंदरगाहों पर सड़ रही है दाल

हमारी थाली से बेशक लापता हो चुकी हो दाल, लेकिन यहां बोरों में भरकर फेंकी पड़ी है दाल. पैरों से रौंदी जा रही ये दाल अब सड़ने लगी है. दाल की बदबू से बचने के लिए लोग नाक दबाकर यहां से गुजरते हैं.
दाल का इतना बुरा हाल है कोलकता पोर्ट के खिदरपुर डॉक में. कोलकाता बंदरगाह के जिस हिस्से में ये दाल सड़ रही है, सड़ती दाल और देश भर में दालों के भावों में लगी आग के बीच बहुत गहरा रिश्ता है.
करीब तीन साल पहले ही सरकार ने भांप लिया था कि दाल की कीमतें आसमान पर पहुंचने वाली हैं. आम आदमी की रसोई से दाल गायब होने वाली है. इसलिए सरकार ने अप्रैल 2007 में पंद्रह लाख टन दाल का आयात करने का फैसला किया. इंटरनेशनल मार्केट से दाल खरीदने के लिए ऑर्डर भी जारी कर दिए गए और दाल आ भी गई लेकिन आम आदमी के लिए नहीं बल्कि बंदरगाहों पर सड़ने के लिए.

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